Saturday, December 3, 2011

शिर्डी वाले साईं बाबा का गुरुवार का चमत्कारी व्रत

साईं बाबा व्रत कथा
साईं का उपदेश- "सबका मलिका एक"
अध्याय-१ "श्री साईं बाबा की कृपा"
एक समय की बात है. ममता जी व उनके पति रतनदेव अहमदाबाद में प्रेमपूर्वक रहते थे. लेकिन रतन का स्वभाव झगड़ालू था. अड़ोसी-पड़ोसी उनके स्वभाव से परेशान थे. लेकिन उनकी पत्नी ममता जी बहुत ही धार्मिक थी. भगवान पर विश्वास रखती थी. और बिना कुछ कहे सब कुछ सह लेती थी. धीरे-धीरे उनके पति का व्यवसाय ठप हो गया रतन जी दिन भर घर पर ही रहते. जिससे उनका स्वभाव और ज्यादा चिद्धिदा हो गया.
एक रोज ममता के द्वार पर एक साधू आए और उससे उन्होंने भिक्षा में दाल-चावल माँगा. ममता ने तुरंत हाथ धोकर महाराज को दाल-चावल दिए. और उन्हें नमस्कार किया. साधू महाराज ने खुश होकर उसे आशीर्वाद दिया और ममता के दु:खो को दूर करने हेतु उसे श्री साईं बाबा के गुरुवार वाले व्रत को करने की विधि समझाई. उन्होंने बताया कि इच्छा के अनुसार ५,७,९,११ या २१ गुरुवार तक साईं बाबा का व्रत करने, विधि से उद्यापन करने, गरोबो को भोजन करने से उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी. इस व्रत को करते समय झूठ, छल आदि समस्त बुरी आदतों का त्याग कर देना चाहिए. व्रत पूर्ण होने पर यथाशक्ति ७,११,२१,४१,१०१  किताबे दान करनी चाहिए. श्री साईं के वचन है श्रद्धा व सबूरी. इन्हें ध्यान में रखासर व्रत रखे. इस प्रकार व्रत करने से साईं बाबा तेरी सभी मनोकामनाए पूरी करेगे. इतने सरल व्रत को सुनकर ममता अत्यंत प्रसन्न हो गई और अगले गुरुवार से ही उसने "साईं बाबा व्रत" का पालन किया और देखते ही  देखते उसके पति के स्वाभाव में आश्चयर्जनक परिवर्तन आ गया और उसने फिर से व्यापर चालू किया जो सफल हुआ. घर पर श्री साईं बाबा की कृपा से सुख-शांति हो गई. 
एक दिन ममता की बहन और उसके पति उससे मिलने आए.रतन और ममता को कुषा देख वे भी प्रसन्न हुए. ममता की बहन ने उससे पूछा कि यह चमत्कार कैसे हुआ? मेरे बच्चे बिल्कुल पढाई नहीं करते और किसी का कहना नहीं मानते, बहुत उद्दंड होते जा रहे है, जिसकी वजह से सब-कुछा होते हुए भी में सुखी नहीं हू. तब ममता ने उसे साईं बाबा सा गुरुवार व्रत कि महिमा बताई. इस व्रत कि महिमा सुन ममता कि बहन प्रसन्न हुई. उसने पूर्ण मनोयोग से श्रद्धा व विश्वास से ९ गुरुवार तक यह व्रत किया और जिसका परिणाम यह हुआ कि उसके बच्चे मन लगाकर पढ़ते व हमेशा कक्षा में अव्वल आते और साथ ही साथ घर के छोटे-मोटे कम में भी उसका हाथ बताते. वह सभी लोगो  को इस महँ व्रत का प्रभाव बताने लगी और स्वाम भी इस व्रत का पालन करती रही. श्री साईं बाबा ने जैश कृपा उन पर कि, वैसी सभी पर करे. जो पते और सुने उसके भी सभी मनोरथ सिद्ध हो जाए.

अध्याय-
व्यवसाय में सफलता
मुंबई में एक व्यापारी जगदीश प्रसाद रहते थे. शहर में उनकी कपडे की कई मिलें थे. सभी प्रकार की सुख-सम्रद्धि थी. अचानक एक-एक कर सभी मिलों में मजदूरो ने हड़ताल कर दी. सेठ-जी बहुत परेशां होने लगे क्योकि मामला गंभीर था. व नेताओ के दबाव की वजह से मिले शुरू होने के आसार भी नहीं लग रहे थे.
ऐसे समय में सेठ-जी के एक दूर के रिश्तेदार का उनसे मिलने आना हुआ. बातो-बातो में सेठ-जी को गुरुवार वाला "साईं बाबा व्रत" करने को कहा. उसने कहा-अप और सेठानी दोनों एक साथ यह व्रत रखे, बाबा की कृपा से सब मंगल होगा. सेठ-सेठानी ने विधि-पूर्वक गुरुवार का व्रत शुरु किया और व्रत शुरु करने के दो सप्ताह के भीतर ही मजदूरो ने हड़ताल वापस ले ली और सभी मिले पुन: शुरु हो गई. साईं बाबा की कृपा से नुकसान में जा रहे जगदीश प्रसाद की एक वर्ष में ही  काफी लाभ हो गया. परिवार में सुख-संथी मिली. इसका सारा श्री सेठ-जी ने  "साईं बाबा व्रत" को दिया.

अध्याय-
शांति बहन की बेटी अनीता वैसे तो बहुल गुणवान थी लेकिन कलि थी. ऊपर से गरीब भी थी. बड़ा दहेज़ दे सकने की उसकी हौसियत नहीं थी. 
अनीता की उम्र विवाह योग्य हो गई थी, पर उसकी शादी हो नहीं पा रही थी. धीरे-धीरे उसकी आयु के साथ माता-पिता की चिंता भी बढने लगी. अनीता खाना पकाने, सिलाई-कड़ी आदि सभी कार्यो में बहुत कुशल थी. उसने एम.ए. किया हुआ था. स्वभाब से भी वह समझदार और हसमुख थी, पर फिर भी उसे योग्य वर नहीं मिल पा रहा था. एक दिन अनीता पड़ोस में अपनी सहेली के यहाँ गई तो देखा वह एक किताब पढ़ रही थाई. सुनीता ने पूछा "क्या पढ़ रही हो?" तब सहेली ने कहा यह "साईं बाबा की किताब है. हमारी मामी के यहाँ आज इस व्रत का उद्धापन था. जहा सभी का एक-एक किताब बाटी गई. जब अनीता ने किताब हाथ में ली और कुछ प्रष्ट पड़े तो सैबबा की कृपा से उसके मन में यह व्रत करने की इच्छा जाग्रत हुई, वह किताब सहेली से लेकर घर आ गई. गुरुवार को सुबह ११ गुरुवार तक व्रत करने की मन्नत मानकर अनीता ने साईं बाबा व्रत करने का संकल्प लिया. उसके मामाजी एक अच्छे घर के पढ़े-लिखे डॉक्टर का रिश्ता लेकर आए. अनीता की मामी और लड़के की माँ बचपन की सहेली थी. व अनीता की मामी ने लड़के से सीधे बात कर ली थी. अनीता सा बारे में सुनकर लड़का बहुत उएसहित था. उसे अनीता जैसी ही पत्नी की तलाश थी, जो पढ़ी-लिखी व सुनी हो और उसके साथ कदम से कदम मिलकर चल सके. अनीता यह सब जानकर बहुत खुश हुई. एक ही माह में सादगीपूर्ण समारोह में सुनीता का विवाह संपन्न हो गया. 

अध्याय-4
उधारी वसूल हो गई. 
दिनेश कुमार जी का प्लासिटक का थोक व्यापर था. परिवार में पति-पत्नी और एक पुत्र था. उनका व्यापर बहुत बड़ा नहीं था, पर परिवार की सुख-सुविधा के हिसाब से पर्याप्त था, परन्तु मुसीबत कह कर नहीं अति. उनके व्यापर में उधर देना जरुरी था, नहीं तो बाज़ार में प्रतिस्पर्हा में वे पीछे रह जाते. ऐसे ही एक व्यापारी की तरफ उनका बढ़ते-बढ़ते ३ लाख उधर फंस गया. उस व्यापारी की नियल में खोट आ गया. और वह रुपये चुकाने में तरह-तरह के बहाने करने लगा. 
अब तो दिनेश कुमार जी बहुत परेशान रहने लगे. उन्हें कंपनी की तपफ़ से तगोदे पर तगोदे होने लगे. उनके अनुसार एक माह में यदि उन्होंर कंपनी का पैसा जमा नहीं करवाया तो कंपनी उन्हें मॉल देना बंद कर देगी. दिनेश की तो रातो की नीद उड़ गई, न तो उन्हें भोजन में रस अत था न ही किसी और बात में. 
एक दिन दिनेश चिंता में बैठे थे, तभी उनके मित्र वर्मा जी आ पहुचे. वर्मा के पूछने पर दिनेश ने उन्हें अपनी चिंता का कारण बताया. वर्मा जी ने कहा-"बस इतनी-सी बात! दिनेश साडी चिंता छोड़ दीजिए और श्री साईं बाबा की शरण लीजिए. गुरुवार वाला साईं बाबा व्रत कलियुग में तत्काल फल देने वाला है, इसे ख़ुशी-ख़ुशी आरंभ करे और चमत्कार देखे. ऐसा कहकर शर्मा-जी ने उन्हें साईं बाबा व्रत कथा की किताब दी और व्रत विधि समझाई.
दिनेश जी ने सपत्नी श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत का आरम्भ किया. व्रत आरंभ करने के चौथे ही दिन वह व्यापारी उनकी दुकान पर आया और कहने लगा की उनका मॉल बेचकर उसे बहुत लाभ हुआ. उन्हें अगले मॉल की जल्द जरुरत  है. साथ ही, उसने पुराना पूरा पैसा तो चुकाया ही, अगले मॉल के भी रूपये अग्रिम दे गया और रुपने चुकाने में हुई देरी हेतु उसने क्षमा मांगी.
दिनेश तो श्री साईं बाबा की ऐसी कृपा देख भाव विभोर हो गए. जो रकम वह डूब चुकी मान रहे थे, वह तो वापस आई ही, व्यापर में भी लाभ हो गया. इस अनुपम व्रत का लोगो को अधिक से अधिक लाभ हो, इसलिए इस व्रत की १०१ किताब अपने स्नेहीजनो में वितरित की.
अध्याय-5
औलाद का सुख 
सुभाष और संगीता के विवाह को १५ साल हो गए थे परतु उनको संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ था. जिसकी वजह से घर में सब कुछ होने पर भी खालीपन-सा रहता था. सास-ससुर भी घर में नन्ही किलकारियां सुनने को तरस गए थे. डॉक्टर  को दिखने के बाद भी वह औलाद का सुख के लिए तरस गए थे.
तभी एक दिन सुभाष के ऑफिस में उसी माह मुंबई से  वदिली होकर आए रमेश ने सभी को लड्डू बाते. सुभाष के पूछने पर उसने बताया कि- साईं बाबा व्रत कि क्रिया से शादी के १० साल बाद उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई है. सुभाष द्वारा पूछने पर उन्होंने उसे पूरी व्रत-विधि समझाई और अगले ही दिन "साईं बाबा व्रत" की एक किताब दी. संगीता ने पुरे विश्वास और श्रद्धा से ९ गुरुवार व्रत किया और श्री साईं बाबा की क्रिया से शीघ्र ही वह गर्भवती हुई और एक बालक को जन्म दिया. अपने कुलदीपक को देख पूरा परिवार प्रसन्न हो गया.
अध्याय-6

ट्रांसफर रुक गया. 
शिल्पा एक कम्पनी में नौकरी करती थी. एक दिन उनका ट्रांसफर आर्डर आया. उनका ट्रांसफर लखनऊ से बहुल दूर अर्गा हो गया. ऊपर से उनकी माता जी की तवियत और ठीक नहीं चल रही थी. जिसकी वजह से वह बहुत परेशान रहती थी. उन्होंने कई लोगो से विनती की लेकिन ट्रांसफर नहीं रुका और आर्डर मिला की १० दिन के अन्दर यदि आगरा ऑफिस में हाजिर न हुए तो नौकरी से निकल दिया जावेगा. संयोगवश उसी दिन उसकी सहेली नंदिता  उससे  मिलने आयी. शिल्पा ने अपनी परेशानी नंदिता से कही. नंदिता ने उससे सैबबा का ९ गुरुवार श्रद्धापूर्वक व्रत रखने को कहा. चुकी उसके दुसरे दिन ही गुरुवार था सो उसने दिन से ही व्रत रख लिया. व्रत रखने के तीसरे दिन  ही पत्र मिला की उसका ट्रांसफर रुक गया है. अब तो साईं बाबा की प्रति उसका विश्वास और भी बढ़ गया. धीरे-धीरे ३ गुरुवार बीतने पर उसकी माताजी की भी तबियत ठीक हो गई. ९ गुरुवार तक व्रत कर उसने विधिपूर्वक उद्धापन किया. गरोबो को भोजन दिया और साईं महिमा का प्रचार करने की लिए साईं व्रत की ५१ किताब बांटी.

ऐसी है "श्री साईं बाबा व्रत" की महिमा! प्रेम से बोलो-
//अनंत कोटि ब्रह्मंड नायक राजाधिराज योगिराज परब्रह्म श्री सच्चिदानन्द सदगुरु साईं नाथ महाराज की जय//

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